रविवार, 31 जनवरी 2016

प्रणमामि परमेश्वरी
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नमस्तुभ्यम् साध्वी , भवप्रीता ,
आद्या , आर्या ,महातपा: ।
दुर्गा , त्रिनेत्रा , चण्डघण्टेति ,
भव्या , भाव्या , महाबला: ।।
सती , भवानी ,अहंकारा ,
चित्तरूपा , चिता , चिति: ।
सत्ता , चित्रा , मन , बुद्धि: ,
प्रणमामि परमेश्वरी !!
--- सर्वानन्द ।
जय माॅं
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अंगकान्ति तो जगदम्बा की ,‍
सूर्य सहस्त्र समान हैै ।
उर पर मुण्डमाल अतिशोभित ,,
रक्ताम्बर द्युतिमान है ।।
स्तनद्वय चन्दन से लेपित ,
मुख मोहक अभिराम है ।
तीन नेत्र‍ त्रिभुवन की माया ,
चन्द्र मुकुट तो ललाम हैै ।।
जपमालिका , विद्या कर से ,
अभया का वरदान हैै ।
कमलासन तिष्ठित देवी को ,
बारम्बार प्रणाम है ।।
---कवि सर्वाानन्द पाण्डेय , अविज्ञात ,
मुख्यनियंत्रक , पूर्वोत्तररेलवे वाराणसी ।
मन सहज ही मदान्ध हो
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दूधिया - सा धवल भवन ,
समु्ज्ज्वला हो चन्द्रिका ।
पति परायण प्रेयसी ,
नीरज नयन मुख मल्लिका ।
सुगन्धमय वातावरण भी ,
पुष्प चन्दन गन्ध हो ।
यदि विरागी जन नहीं तो ,
मन सहज ही मदान्ध हो ।।
--- कवि सर्वानन्द पाणेडेय ,अविज्ञात ,
मुख्य नियंत्रक , पूरर्वोत्तर रेलवे , वाराणसी ।
नमो मतङ्गमुनिपूजिता
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नमो शाम्भवी देवमाता ,
मातङ्गी , सुरसुन्दरी ।
अनेकवर्णा चामुण्डा ,
ब्राह्मी ऐन्द्री माहेश्वरी।।
स्रर्वशास्त्रमयी सत्या ,
नित्या बहुला उत्कर्षिणी ।
दक्षकन्या बहुलप्रेमा ,
अमेयविक्रमा शूलधारिणी ।।
सदागति: विमला ज्ञाना ,
वाराही सुरपूजिता ।
कात्यायनी भद्रकाली ,
नमो मतङ्गमुनिपूजिता ।।
---कवि सर्वानन्द पाण्डेय , अविज्ञात,
मुख्य नियंत्रक , पूर्वोत्तर रेलवे , वाराणसी ।
मित्रता / सन्मित्रता
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हो परख तब मैत्री कहाॅं ? 
क्यों मित्रता की परख हो ? 
क्यों पुरुष बाहर परख से? 
नर-नारि मेंं क्यों फरक हो ??
यह मित्र‍ता तो फरेेब है ,
धोखाधड़ी की पोटली ।
करते चयन से मित्र‍ता ,
यह बात कितनी खोखली ?
मनमाफिक को मित्र‍ बनाले ,
नापसन्द को दूर हटा ।
सुन्दर कपड़े धारण कर लेंं ,
दूर हटा दें कटा - फटा ।।
पूर्ण स्वार्थमय संसार मे ,
सभी मित्र‍ रिपु कोई नहीं।
जीव - जन्तु सभी जड़ जंगम ,
व्योम वायु जल अ्ग्नि मही ।।
सद्विचार कुविचार मित्र अरि ,
अन्दर सबके बैैठे हैं ।
लोक आचरण अपने देखें ,
सबके संग हम कैसे हैं ।।
--- कवि सर्वानन्द पाण्डेेय , अविज्ञात ,
मुख्य नियंत्रक पूर्वोत्तर रेलवे , वाराणसी ।
माँ दुर्गा 

कौमारी क्रिया नित्या ,
युवती प्रौढा बलप्रदा ।
मु्क्तकेशी घोररूूपाश्च,
नमो यति: नारायणी ।।
अनन्ता रौद्रमुखी क्रूूरा ,
सावित्री ब्रह्मवादिनी ।
प्रत्यक्षा एककन्याश्च ,
सर्वासुरविनाशिनी नम: ।।
---- कवि सर्वानन्द पाण्डेय , अविज्ञात ,
मुख्य नियंत्रक , पूूर्वोत्तर रेलवे , वाराणसी ।
हूर भी नाखास है 
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तीरगी जो दिल में हो 
तो नूर सब नाकाम है ।
जज्बात जो गन्देे हुए ,
तो हूर भी नाखास है ।।
हर हेमेशा इ्ल्म हर ,
नीचा दिखाना गर रहा ।
हासिल न होगी चीज वह ,
जिसकी मुकम्मल हुनर है ।।